Tuesday, 16 October 2012

एहसास



क्यों कभी धूप है ज़िन्दगी तो कभी शीतल छाया,
कभी अगर डर है तो कभी निडरता का एहसास 
क्यों कभी गर्व है तो कभी कायरता सी क्रूरता,
माँ तुझे  देख ये दिल कभी खिल उठता है तो
कभी एक मुस्कुराहट क लिये तरसता है 
कभी सिमट जाना चाहत हु तेरी हंसी में 
कभी तेरे आंसुओ को पी जाना चाहता हु 
फिर एक डर सा आ जाता है......
कहीं छिन्न न जाओ तुम ...कहीं छिन्न न जाये ये  बच्पन्न ....
है ये मेरे दिल की इबादत कही पिघल  न जाये ये मोम का तन ....

कभी कभी सोचता हु तू इस मुसीबत में भी कैसे मुस्कुरा रही है 
समझना चाहता हु की तू इतनी हिम्मत कैसे दिखा रही है 
कभी ढूंढना चाहत हु तेरे प्यार का पिटारा 
जानना चाहता हु क्यों कभी मानी और कभी नहीं मानी तुने मेरी मनमानी 
बनना   चाहता  हु तेरे हाथो के हर ख़ुशी की लकीर 
पर माँ मैं  फिर सहम जाता हु ......
कहीं छिन्न न जाओ तुम ...कहीं छिन्न न जाये ये  बच्पन्न ....
है ये मेरे दिल की इबादत कही पिघल  न जाये ये मोम का तन ..

कभी पाना चाहता हु तेरे विश्वास की हर डोर 
जानना चाहता हु ममता की धीमी से धीमी शोर 
कभी कभी तो तुझे देख आंसू थमते ही नहीं 
हर पल तेरे साथ होना चाहत हु .....

मैं शायद समझा लू अपने आप को हर घबराहट में ...
मैं  शायद रोंद दू हर ख़ुशी को चाहत से ...
मैं  शायद खिल उठू दोबारा ले तेरा सहारा ....
पर माँ गर तू  छोड़ चली गयी....

               छिन्न जायेगा ये बचपंन 
               छिन्न जाएगी मासूमियत 
               चिन्न जाएगी जीने की आस 
               छिन्न जायेगा मुझसे मेरा हर "एहसास"....

Pragya Jha
III Year Student, The LNMIIT

No comments:

Post a Comment