Saturday 22 February 2014

वक्त


चलो न वक्त ए दरिया में उतरे | 
उसमे बह रहे लम्हों को पकड़ कर गोते लगाए,
हर पल की कैफियत को तस्स्वुर से निहारें,
इसमें डूब रहे फसानो को बाँहों में लेलें | 

चलो न वक्त ए दरिया में उतरे |
इसमें अपना चेहरा देखें और खुद की शिनाख्त करें 
आओ न इस दरिया में हाथों की लकीरों को मिटा डालें,
और अपने मुस्तकबिल को मुकम्मल बना लें | 

चलो न वक्त ए दरिया में उतरे |
इसमें कांटा डाले और मुख्तलिफ लम्हातो 
में से खुशनुमा पलो को पकडे,
आओ हम इसमें घुली गम की गर्दो को अलग कर लें | 

चलो न वक्त ए दरिया में उतरे |
आशाओ की कश्ती में होंसलो की बादबानी बांधे,
एक जुनूनी सी पतवार थामे,
इसमें आने वाली अज़ाब ए लहरो का सामना करें,
कहीं दूर चले, बहते चलें, फिरदौस चलें |



Aniruddh Nandwana
Y13 Undergraduate, The LNMIIT

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